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मेरे शहर से !

कभी तुम्हें लगाव देखना हो, 

तो मेरे से मेरे शहर का नाता देख लेना, 

जहां मेरी सारी नादानियां सही जाती है, 

मेरी हर एक शिकायत सुनी जाती है।


कभी तुम्हें सुकून समझना हो, 

तो मेरे नजरों में मेरा शहर देख लेना, 

जहाँ की हर गली में मेरा एक किस्सा था,

और वहाँ हर ख्वाब में मेरा भी हिस्सा था।


कभी तुम्हें प्यार महसूस करना हो,

तो शहर के पहले इश्क की कहानी देख लेना,

मेरे इजहार, उसके इनकार का एहसास करना,

पर उस अधूरी बात को वहीं छोड़ के आना।


कभी तुम्हें घर की याद सताए,

तो मन में बसा मेरा शहर देख लेना,

जिसकी छाप मेरी आदतों में महसूस हो,

जिसकी सादगी मेरी रूह में बसती हो।


कभी मैं खो जाऊं और तुम मुझे ढूंढो,

तो मेरे शहर का रास्ता देख लेना,

मैं उन राहों पे सहरता हुआ मिलूंगा,

शहर में अपना घर फिर बसाता हुआ मिलूंगा।


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